गाज़ीपुर। डूबता छात्रों का भविष्य और धू-धू कर जलता मासूमों का स्कूली बैग। क्या शिक्षा को तिल तिल मरता देख, आपको नींद आ जाती है? या फिर सुबह की चाय पर आप मुगलकालीन इतिहास के रीमिक्स कहानी पर चर्चा करते हैं? या फिर महंगाई के समर्थन में आए हुए मैसेज को अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को फॉरवर्ड करते हैं? विकास की परिभाषा को बॉलीवुड की फिल्मों की तरह इंटरेस्टिंग बनाकर टीवी चैनल्स पर आपके सामने परोसा जाता है और आप एक कमरे में बंद होकर विकास के अभूतपूर्व सपने देखकर प्रसन्नचित मुद्रा में होकर सो जाते हैं।

आपकी यह सोच आपको और आपके समाज को अंदर से खोखला कर रही है और आपके विकासरूपी बिल्डिंग के नीव को कमजोर और बहुत कमजोर कर रही है।

यदि आप समाज के हितैषी हैं और सच्चे देशभक्त हैं तो शराब घर से बाहर निकलिए अपने कदमों को उन टूटी-फूटी सड़कों पर दौड़ाइए, जो विकास के सपने देख कर आंसू बहा रही हैं। अपनी नजरों को बस बजाती नालियों से निकलते गंदे पानी से डूबती सड़क और कचरे के ढेर से पैदा होती बीमारियों पर दौड़ाइए। ये तस्वीरें आपको विकास रूपी सफेद कमीज पर फैली हुई काली स्याही की तरह नजर आएंगी।

फोर लेन बना, एक्सप्रेस वे बना, लेकिन क्या आपके गांव और शहर की सड़क बनी। फोर लेन और एक्सप्रेस वे से ये सक्षम अपने कार्य और व्यापार के लिए लखनऊ दिल्ली पहुंच जाएगा। लेकिन गांव में रहने वाले एक गरीब परिवार को अपने शहर का विकास चाहिए। क्यों की गरीब शिक्षा के लिए शहर की ओर आता है व्यापार के लिए शहर की ओर आता है। और जब वह अपने गांव से शहर की ओर जाता है तो खराब सड़कों की वजह से उसे पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है और जब शहर पहुंचता है तो कहता है इससे अच्छा तो मेरा गांव है। सड़क की चर्चा बहुत लंबी हो जाएगी मुख्य बिंदु पर आते हैं।

आम जनमानस, सड़क कैसी भी हो वह स्कूल और कॉलेज पहुंच रहा है लेकिन क्या उसका भविष्य सवर रहा है?

प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले मासूम बच्चों स्कूली बैग को जलता देख सिस्टम शर्माता भी नहीं है।

डिग्री कॉलेज में परीक्षा के पहले तक हो रहे प्रवेश और परीक्षा परिणामों में बर्बाद हो रहे हैं युवाओं के भविष्य की बातें तो सिस्टम के लिए आम हो चली हैं।

क्या आपके फेवरेट जनप्रतिनिधि ने मासूम बच्चों के चलते पेक्टर कोई गंभीर सवाल उठाया। क्या डिग्री कॉलेज के खोखले सिस्टम को देखने और उसकी सुध लेने आपका जनप्रतिनिधि पहुंचा? आज पीजी कॉलेज के तमाम छात्र वहां पर हो रही लापरवाही को लेकर लामबंद है। समय-समय पर वह पत्रक देते हैं व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की मांग करते हैं लेकिन वह मांग धरी की धरी रह जाती है। लाख प्रयासों के बाद ऑनलाइन फॉर्म सबमिशन और ऑनलाइन फीस सबमिशन की प्रक्रिया शुरू हुई लेकिन लंबे वक्त तक होते प्रवेश प्रक्रिया और और परीक्षा परिणामों में लापरवाही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना नहीं छोड़ रही है। यहां के छात्र विश्वविद्यालय की मांग को लेकर कई प्रयास कर चुके हैं और कर रहे हैं। उन्होंने पहले भी कई जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखा, मुख्यमंत्री को खून से लिखा पत्र भेजा और ट्विटर पर विश्वविद्यालय की मांग को ट्रेंड भी कराया और तो और अभी पिछले दिनों उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को पत्र भी सौंपा। दिनेश शर्मा ने कह तो दिया कि गाजीपुर शिक्षा का हब बनेगा। लेकिन क्या 5 सालों में ये हो पाया। कॉलेज के छात्र युवा है अपनी मांगों को ऊपर तक पहुंचाने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं। लेकिन जरा सोचिए एक मासूम शिक्षा के हक को कैसे मांगे क्या अब मासूम भी सड़क पर उतरकर आंदोलन करें।

कॉलेज छात्रों के परीक्षा परिणाम में विश्व विद्यालय की तरफ से गलतियां हो रही हैं उन गलतियों को सुधारने के लिए गाजीपुर के कॉलेज के छात्रों को जौनपुर पूर्वांचल विश्वविद्यालय जाना पड़ता है जो काफी दूर है एक बार जाने से समस्या का समाधान नहीं होता है और बार-बार जाना संभव नहीं है। गरीब छात्रों को आर्थिक परिस्थितियों से गुजरना भी पड़ता है। यही कारण है कि 300 से ज्यादा कॉलेज वाला गाजीपुर विश्वविद्यालय की मांग कर रहा है।

ये तस्वीरें यह जाहिर करती हैं कि हमारे देश में विकास तो दूर, शिक्षा की अलख देखने को भी जन-जन है मजबूर।

बीते गुरुवार को बीआरसी जमानिया के प्रांगण में करीब 1500 सरकारी स्कूल बैग लावारिस हालत में पाए गए। इनमें से कई सारे बैग जले हुए थे तो कई अधजले और कई सही भी थे। लावारिस हालत में फेके गए स्कूली बैगों का ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जब पत्रकारों ने इसके बारे में पता करने की कोशिश की तो पता चला कि कुछ महीने पूर्व यानी 10 मई 2021 को दोपहर में बीआरसी जमानिया के कमरे में आग लग गई थी। बगल में दमकल का कार्यालय होने के कारण आग पर जल्दी काबू पा लिया गया था। लेकिन सात माह बाद आग का शिकार हुए मासूम छात्रों के स्कूल बैग को फेक दिया गया।

यह घटना कई गंभीर सवाल खड़े करती है। जानकारी के अनुसार कागज पर छात्रों में स्कूली बैग बांटे जा चुके थे तो फिर गोदाम में स्कूली बैग क्या कर रहे थे? जो बैग सही थे उनको रखा क्यों नहीं गया? बीआरसी की हालत इतनी जर्जर क्यों है? क्या कागज पर जितने बच्चों का नाम है उतने बच्चे विद्यालय आते हैं? गाज़ीपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी हेमंत राव ने जांच कर कार्यवाही करने की बात कही है।

चाहे पिछले 5 साल की बात हो या पिछले 25 सालों की बात हो अगर व्यवस्थाएं ठीक होती तो आज जनपद वासियों को यह दिन नहीं देखना पड़ता।

Leave a Reply

error: Content is protected !!

Discover more from ABT NEWS

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading