गाज़ीपुर |लोग कहते हैं कि संघर्ष, मेहनत और समर्पण, इसकी कीमत वही जनता है जिसके जीवन में ये तीन चीजें प्रबलता से मौजूद हो. लेकिन बदलते जमाने ने संघर्धशील व्यक्ति को भी स्वार्थी बना दिया है. अब ये बातें सबके लिए तो नहीं कह सकते, लेकिन आज कल आमतौर ये देखने को मिल जाता है. कहते हैं कि जो पैसे संघर्षों से कमाता है वही उसकी कीमत जनता है. कुछ ऐसा ही हाल हमारे सिस्टम का. धन की बर्बादी इनके लिए नाले के पानी की तरह है. सरकार का राजस्व आम जनमानस के खून पसीने की कमाई के पैसे पर लगे टैक्स से भरता है और सरकार के लिए काम करने वाले अधिकारीयों को इसकी कीमत का अंदाजा भी नहीं लगता। अलग तरह के संघर्षों से मिली सरकारी नौकरी मोटी तनख्वा से इन्हे अपने दर्द के अलावा जनता का दर्द कहाँ समझ में आएगा। ये उस दर्द को भी भूल जाते हैं जहाँ से संघर्ध करने के बाद इन्हे अवधा मिलता है. अवधा मिलने के बाद अपना घर, बँगला बन जाता है, बच्चे गांव के प्राथमिक विद्यालय में नहीं, महंगे वाले स्कूल में पढ़ते हैं. तो फिर गरीब जनता के दर्द को समझने का इनके पास समय कहाँ? कुछ समय के मारे हैं, कुछ आदेशों के.
जी हाँ इस बार तो लोक निर्माण विभाग की ओर से गाज़ीपुर के बारा गंगा घाट पर बने पीपा पुल को 15 जून तक तोड़ने का निर्देश जारी हो गया है। रखरखाव में लगे कर्मचारी पीपा पुल पर लगे उपकरणों को खोलने और हटाने की तैयारी में हैं।पक्का पुल न होने के कारण लोक निर्माण विभाग ने बारा गंगा घाट पर लाखों रुपये खर्च कर पीपा पुल का निर्माण कराया है। जून माह के शुरुआत के बाद से बारिश के आसार प्रबल होते ही पीपा पुल को तोड़ने की प्रक्रिया आरंभ होती है।

लगभग तीन माह तक पीपा पुल के चालू रहने पर सेवराई तहसील क्षेत्र के अलावा बिहार के लोग वाहन सहित गंगा आर-पार होते हैं और पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के रास्ते लखनऊ, दिल्ली तक का सफर तय करते हैं। इस बार बारा गंगा घाट पर मई माह में किसी तरह पीपा पुल को चालू कर कोरम पूरा करने के बाद अब इसे खोलने की तैयारी होने लगी है। टूटी रेलिंग एवं बिना चकर्ड प्लेट के ही आवागमन होता रहा है। अधिकारियों ने प्रांतीयकरण की दलील देकर पूरा सीजन बीता दिया। चार पहिया वाहन चालक किसी तरह बचते रहे। सेवराई तहसील एवं बिहार के दर्जनों गांवों से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, मुहम्मदाबाद एवं बलिया जाने के लिए बीते मई माह में बारा गंगा घाट पर पीपा पुल का निर्माण हुआ था, ताकि लोगों को गंगा पार करने में सुविधा हो सके। महज एक माह में ही अब पुल को तोड़ने की तैयारी शुरू हो गई है।
पीपा पुल होने से सेवराई तहसील क्षेत्र के गांवों के अलावा बिहार के लोग सीधे मुहम्मदाबाद एवं बलिया से जुड़े रहते थे, लेकिन अब इन्हें गाजीपुर होकर आवाजाही करनी पड़ेगी। इससे न सिर्फ काफी दूरी तय करनी होगी, बल्कि अधिक धन भी खर्च करना होगा। अब सवाल ये है कि क्या इन सब में जनता के धन का दुर्पयोग नहीं हुआ? क्या सरकार के राजस्व की कोई कीमत नहीं? क्या सिस्टम की योजनाओं का प्रारूप इतना बोगस होता है कि धन की बर्बादी हो सुनिश्चित है.
आप ने कई बार देखा होगा, सड़क के ऊपर सड़क बना देना। नयी सड़क में गद्दा कर देना। एक बार सड़क PWD बनता है, फिर उसे जलकल तोड़ता है और फिर बनाता है, फिर उसे कोई एजेंसी खोद देती है और फिर बनाती है. क्या इन सब में धन की बर्बादी नहीं होती है? क्या कोई भी कार्य योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो सकता या जनता के धन को किसी न किसी माध्यम से, कभी न सुदा शांत होने वाले पेट में भरना ही सिस्टम का खेल है और खेल पर लगाम न लगना, कहीं न कहीं सरकार की विफलता है. विचार कीजियेगा।
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