Apna Uttar Pradesh

मंत्री जी ये देखिये विकास…

अभिनेन्द्र की कलम से…

यूपी के जनपद गाजीपुर में विकास के कई मानचित्र तैयार हो रहे हैं. विकास के दावे भी हैं और विरोध भी. हमेशा की तरह मैं जन समस्याओं को केंद्र में रख कर ही इस खबर रूपी कहानी को आपको सुनाऊंगा. मकसद समाज को जागरूक करना है.

गाजीपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं के ऊपर पहले ही कई सवालिया निशान हैं. नाजाने कितने लोग सरकारी अस्पतालों की दुर्व्यवस्थाओं की वजह से भूखे रख कर पैसे इकठ्ठा करते हैं और अपनों का इलाज निजी अस्पतालों में करवाते हैं. लेकिन अब तो स्वास्थ्य कर्मियों ने ही भूख हड़ताल कर दिया. अब इनको कैसी तकलीफ है इसको भी समझने की जरुरत है. एक पद एक समान वेतन और वेतन विसंगतियों को दूर करने की मांग को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों ने सीएमओ कार्यलय पर प्रदर्शन किया।

खैर गाजीपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए तो बहुत प्रयास हुआ है, काम भी हुआ है लेकिन जमीनी स्तर पर समस्याएं बहुत हैं. गाजीपुर नगर पालिका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. रविवार को सूबे के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर का आगमन गाजीपुर शहर के आमघात स्थित गाँधी पार्क में हुआ. मौका था 19 करोड़ की 100 से ज्यादा विकास परियोजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास का. कैबिनेट मंत्री ने कहा कि नगर पालिका बोर्ड ने इतना काम किया कि सिर उठाकर जनता के बीच जा सकते हैं.

अब मंत्री थोड़ा पैदल ही गाजीपुर शहर में घूम लेते, यहाँ के पार्कों से अच्छा तो मंत्रियों के बंगले का गार्डन है. शहर के बाज़ार से अच्छा तो ग्रामीण अंचलों का बाज़ार है. यहाँ ट्रैफिक व्यवस्था से अच्छा तो जनपद के अन्य गाँव हैं जहाँ कम से कम फोर लेन तो गुजर रहा है. देख कर ही विकास वाली अनुभूति कर लेते हैं. पूरे शहर में पार्किंग और आटो स्टैंड न होने से लोग लगने वाले जाम से जूझ रहे हैं। हालांकि प्रशासन की ओर से चार जाम प्वाइंट ऐसे तय किए गए हैं जहां पार्किंग होनी चाहिए। लेकिन यहां व्यवस्थाएं नदारद हैं। ऐसे में लोगों को जाम से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। विवाह और त्योहारों में तो स्थिति और विकट हो जाती है। शहर में सबसे अधिक महुआबाग, लंका, रौजा और लाल दरवाजा वाली सड़क पर दिन भर ट्रैफिक और जाम की समस्या रहती है। यहां कहीं भी ई-रिक्शा व आटो रिक्शा के लिए स्टैंड नहीं है। इससे लोगों को वाहनों को सड़क की पटरियों पर ही खड़ा करना पड़ता है। वाहन बेतरतीब खड़ा होने से सड़क संकरी हो रही है। ऐसे में वाहन या फिर पैदल आने जाने में भारी परेशानी लोगों को हो रही है। आम तौर पर दोपहर और शाम के वक्त लोगों को इस समस्या से अधिक दो चार होना पड़ता है। सड़क पर बिजली के खंभे, अतिक्रमण और सड़क का चौड़ीकरण नहीं होने से जाम होना प्रमुख कारण है। इससे भी शहर के प्रमुख सड़कों पर जाम की स्थिति पैदा हो जाती है। महुआबाग और चर्च वाली रोड पर डीवाईडर और सुन्दरीकरण का सपना और बजट दोनों ही लोलीपॉप बन गया जो चुनाव में काम आएगा.

ये छोडिये साहब थोडा गंगा घाटों का दौरा भी कर लेते. घाटों पर फैली गंदगी ना दस सालों में साफ़ हो सकी और न ही आठ सालों में. नमामि गंगे का बजट कब कहाँ कैसे खर्च हुआ इसका पता ही नहीं और जनता सवाल भी नहीं करती. नेता भी निश्चिन्त हैं कि अगर जनता ज्यादा सवाल करेगी तो वो हिन्दू मुस्लिम वाला मसाला है ही तड़का लगा देंगें फिर तो चुनाव अपने पक्ष में है. मेरे इन सवालों पर कुछ नेता विपक्ष को निशाने पर लेंगें और कहेंगें की पिछली बार जो था उसने बस लूटा, मैं तो इमानदार हूँ. अरे भैया विपक्ष जब सत्ता में था और उसने जनता को संतुष्ट किया होता तो आपको आने की जरुरत ही नहीं पड़ती. आपको जनता ने किस उम्मीद से लाया.

दरअसल गाजीपुर, सैदपुर, सादात, मोहम्दाबाद, बहादुरगंज, दिलदारनगर, जमनियां और जंगीपुर में नगर निकाय के चुनाव हैं और सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की टिकट के लिए होड़ लगी हुई है. खीचा तानी तो समाजवादी पार्टी में भी चल रही है. गाजीपुर नगरपालिका अध्यक्ष पद अनारक्षित है. आशंकाएं हैं कि लड़ाई भाजपा के विनोद अग्रवाल, सपा के विवेक सिंह शम्मी और बसपा के शरीफ के बिच फिर हो सकती है लेकिन सपा के कुछ सूत्रों का कहना है कि सपा के अन्दर एक अलग युद्ध शुरू है. विवेक सिंह शम्मी को बगावत की बू आ रही है. लोगों का कहना है कि यदि शम्मी को टिकट मिल भी जाए तो कहीं पिछली बार की तरह बसपा के शरीफ वोट कटुआ न साबित हो जायें. लोग तो दबी जुबान में ये कह रहे हैं कि बसपा को तो मुसलमानों का वोट बाटने की महारत हासिल है. खैर ये सब तो वक़्त बताएगा. अभी तो बहुत कुछ स्पष्ट होना बाकि है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ द्वारा प्रदेश के नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना पर सोमवार को लगाई गई रोक कल तक जारी रहेगी। नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाते हुए दाखिल जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से जवाब देने के लिए एक दिन का और समय देने की मांग की गई थी जिसे न्यायालय ने मंजूर कर लिया।

इससे पहले प्रदेश सरकार ने 762 में 760 नगर निकायों में महापौर और चेयरमैन के सीटों के आरक्षण की अनंनतिम अधिसूचना जारी कर दी है। इनमें 17 नगर निगमों में महापौर के अलावा 199 नगर पालिका परिषद और और 544 नगर पंचायतों के चेयरमैन की सीटें शामिल हैं। हालांकि आरक्षण सभी 762 नगर निकायों के लिए निर्धारित कर दिए गए हैं। लखनऊ, कानपुर व गाजियाबाद समेत महापौर की आठ सीटों को अनारक्षित रखा गया है। 2017 में ये तीनों सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं।

वहीँ 2017 में हुए निकाय चुनाव की तुलना में इस बार निकाय की सीमा में करीब 70 लाख अधिक आबादी शामिल हो गई है। 2017 में निकाय क्षेत्रों की आबादी 4.16 करोड़ थी, जो इस बार 4.85 करोड़ हो गई है। इसकी वजह 10 नगर निगमों समेत कुल 130 नगर निकायों का सीमा विस्तार और 111 नई नगर पंचायतों का का गठन किया जाना है।

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