अभिनेन्द्र की कलम से…

1989 में हिन्दी के महान साहित्यकार निर्मल वर्मा की एक कहानी प्रकाशित हुई. रात का रिपोर्टर. वक्त मिले तो इस कहानी को पढ़िएगा, आपको आज के उन पत्रकारों की मानसिक हालत दिख जाएगी जो गिनती के दस बीस रह गए हैं और पत्रकारिता कर रहे हैं. क्या जोखिम उठाने वाले पत्रकारों और पत्रकारिता के संस्थानों के बिना लोकतंत्र की कोई भी परिभाषा मुकम्मल हो सकती है? पत्रकारों के बीच अब बातचीत खबरों को लेकर कम, गिरफ्तारी की आशंका को लेकर ज़्यादा होने लगी है. क्या आप उस शोर को बिल्कुल नहीं पहचानते जिसे पैदा ही किया जाता है कि असली ख़बरें ग़ायब हो जाएं. उस शोर में आपको वही सुनाई दे जो सत्ता सुनाना चाहती है. क्या आप दर्शकों और पाठकों ने बिल्कुल ही देखना बंद कर दिया है कि जिन लोगों ने पत्रकारिता को शर्मिंदा किया, अपनी खराब पत्रकारिता से देश का नाम ख़राब किया. कुछ दर्शक कहते हैं कि मैं भूमिका बहुत बनता हूँ. सवाल भूमिका बनाने का नहीं है. सवाल समाज को जागरूक करने का है. एक समाज की मूलभूत जरूरतें क्या हैं. क्या राजनीति मूलभूत जरूरतों को पूरा करती है. या आज के परिवेश में विध्वंश ही विकास है. किसी सरकारी भूमि पर कोई निर्माण कैसे हो गया? जितना दोषी निर्माण करने वाला होना चाहिए, उससे बड़ा दोषी उस वक़्त का अधिकारी होना चाहिए जिसने निर्माण करने दिया.

अब ये खबर उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर से है। हमारे संवादाता हसीन अंसारी ने बताया कि गाजीपुर में चक रोड पर बने कई मकानों को प्रशासन ने ध्वस्त किया है।हाईकोर्ट के आदेश पर प्रशासन ने ध्वस्तीकरण की ये कार्यवाही की है।हाईकोर्ट ने 15 मकानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। दरअसल ये पूरा मामला सदर कोतवाली क्षेत्र के मीरनपुर सक्का गांव का है।जहां चक रोड पर अवैध अतिक्रमण कर लोगों ने अपने मकान बना लिए थे।इस मामले पर हाईकोर्ट ने बेदखली का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट के आदेश पर स्थानीय प्रशासन ने चक रोड पर अवैध अतिक्रमण कर बनाये गए कई मकानों बुल्ड़ोजार चला दिया। जब चर्चा बुलडोजर की हो रही हो तो आपको सांसद अफजाल अंसारी और उनके परिवार के ऊपर हो रही कार्रवाई तो याद आ ही गया होगा. इन कार्रवाइयों को लेकर सांसद अफजाल अंसारी ने हमेशा ही कहा कि उनका दामन साफ़ है. ये सब राजनितिक द्वेष के वजह से हो रहा है और उनको कानून पर पूरा भरोसा है. खैर इससे अलग आज की राजनीति में विकास की बातें ज्यादा होती हैं. लेकिन सवाल गाँव गाँव के जमीनी विकास का है. जब तक गाँव की सडकें अच्छी नहीं होंगी, तब तक लोग उन सड़कों से शेरोन की ओर नहीं आ सकते या रोजगार उनके गाँव तक नहीं जा सकता है. जहाँ एक तरफ विपक्ष के तमाम नेता अपने आप को असहाय बता रहे हैं तो वहीँ गाजीपुर संसाद अफजाल अंसारी अलग रंग में ही नज़र आ रहे हैं. एक तरफ जहाँ संपत्तियों की कुर्की और बुल्डोज़र के गरज से मीडिया प्लेटफार्मस की चमक बढ़ रही है तो वहीँ दूसरी तरफ सांसद ने अफजाल अंसारी ताबड़तोड़ सड़कों का उद्घाटन कर रहे हैं और वो भी वो सडकें जो अपने बेबस हालत पर आंसू बहा रही थी.

रविवार को सांसद अफजाल अंसारी ने 3 सड़कों का उद्घाटन किया. जिसमे दिलदार नगर पलिवां से ताजपुर कुर्रा मार्ग, जिसकी लम्बाई लगभग 5 किलोमीटर है और इस सड़क की लागत करीब 3 करोड़ 95 लाख़ 48 हज़ार है. वहीँ दूसरी सड़क दिलदार नगर से खजुरी अरंगी मार्ग, जिसकी लम्बाई करीब साढ़े 5 किलोमीटर है और सड़क की लागत करीब 4 करोड़ 12 लाख़ 40 हज़ार है. वहीँ तीसरी सड़क दिलदार नगर जमनिया मार्ग के 5 किलोमीटर से उतरौली कैनाल पटरी मार्ग है जिसकी लम्बाई 14 किलोमीटर 200 मीटर है और सड़क की लगत 10 करोड़ 89 लाख 61 हज़ार है. इन सड़कों के उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता जमीनिया विधानसभा से विधायक ओम प्रकाश सिंह ने किया. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्त्ता मौजूद रहे.

इसके पहले भी उन्होंने कई सड़कों का उद्घाटन किया है. अफजाल अंसारी का कहना है कि जिले में उनके प्रस्ताव पर केंद्र सरकार के द्वारा 250 किलोमीटर की सड़कों का प्रस्ताव पास हुआ है। जिसकी लागत लगभग 190 करोड़ रूपए है। उन्होंने बताया कि अब तक करोड़ों रुपए की लागत से करीब 17 सड़कों का उद्घाटन भी उनके द्वारा गाजीपुर लोकसभा में किया जा चुका है। उनका कहना है कि मानक के अनुरूप उत्तम गुणवत्ता वाली सड़कों और विकास कार्यों के लिए वह कटिबद्ध है। इस सड़क का 5 साल मेंटेनेंस रखरखाव भी कार्यदायी संस्था ही करेगी। जिससे कि क्षेत्र का विकास होगा।

खबरें सामाजिक हित से जुडी हुई होनी चाहिए ताकि समाज जागरूक बन सके. आज के दौर में जनता के मूलभूत समस्याओं से ज्यादा हिन्दू मुस्लिम, बुलडोज़र और माफिया वाली ख़बरों पर ज्यादा समय खर्च होता है. जिसका सीधा फायदा किसे होता है ये आपकों स्वयं समझना होगा. आप इन ख़बरों में उलझ कर ये भूल जाते हैं कि जब पेट्रोल 100 रूपये में खरीद ही रहे हैं, खाने का सामान, सब्जियां महँगी हो ही गई हैं, बस का भाडा भी बढ़ गया हैं तो मेरे गाँव की सड़क क्यों नहीं बनी, सरकारी स्कूल की ईमारत क्यों जर्जर है, हम मर मर के पढने के बाद भी बेरोजगार क्यों हैं? इन सबसे जो राजस्व को फायदा होता है वो जाता कहाँ है? आज भी गाजीपुर का वो शहर जहाँ विकास की गंगा बहाने का दावा हुआ. नगरपालिका, राज्य और देश में एक ही पार्टी की सरकार होने के बाद भी ये शहर, शहर नहीं लगता, गाँव का कोई बाज़ार लगता है. हमारी प्राथमिकता सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार होना चाहिए… जिम्मेदार सरकार का विरोध मत करें, उनसे सवाल करें और अपनी समस्याओं का समाधान निकालें. जब पांच सालों में नेताओं का आलिशान मकान बन सकता है, महँगी गाड़ियों का काफिला आ सकता है, राजनितिक पार्टी का आलीशान दफ्तर बन सकता है तो आपका शहर भी स्मार्ट बन सकता है.

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