अभिनेन्द्र की कलम से…
आज, 6 दिसंबर को बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर की पुण्यतिथि है. बाबा साहेब को भारतीय संविधान का आधार स्तंभ माना जाता है. उन्होंने समाज में व्याप्त छूआछूत, दलितों, महिलाओं और मजदूरों से भेदभाव जैसी कुरीति के खिलाफ आवाज बुलंद की और इस लड़ाई को धार दी. उनका मानना था कि मानव प्रजाति का लक्ष्य अपनी सोच में सतत सुधार लाना है. लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी देश में जाति और धर्म को लेकर लड़ाइयाँ होती हैं. जानकारों का मानना है कि राजनीति ने कभी जाति प्रथा को ख़त्म होने ही नहीं दिया. बाबा साहेब ने कहा था कि “मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है.” लेकिन दुर्भाग्य हा कि आज भी उनकी प्रतिमाओं को तोड़ने की खबर आती है. आज देश कि जनता ने संविधान में एकता का सन्देश देने वाले का ही विभाजन कर दिया है. एक वर्ग आंबेडकर को मानता है तो कुछ विरोध करते हैं. सदियों राज भोगने वाला निचे नहीं झुकना चाहता और जो निचे था वो आज भी अपने अधिकरों की लड़ाई लड़ रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को महापरिनिर्वाण दिवस पर संविधान निर्माता एवं भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने एक ट्वीट किया, “महापरिनिर्वाण दिवस पर मैं डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और हमारे राष्ट्र के लिए उनकी अनुकरणीय सेवा को याद करता हूं। उनके संघर्षों ने लाखों लोगों को उम्मीद दी। भारत को इतना व्यापक संविधान देने के उनके प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।” आंबेडकर की पुण्यतिथि हर वर्ष छह दिसंबर को मनाई जाती है। इसे महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। बाबासाहेब आंबेडकर का निधन छह दिसंबर, 1956 को नयी दिल्ली में हुआ था।
प्रधानमंत्री व्यापक संविधान की बात करते हैं लेकिन देश का एक वर्ग आज भी उस संविधान के निर्माता में भेद रखता है. खैर हमारे देश में राजनीति ने कल भी जाति प्रथा को ख़त्म नहीं कर पाया और आज भी जनमानस को जातियों में बात कर राजनीति होती है. पिछले चुनाओं में कई खबरें आयीं कि भारतीय जनता पार्टी दलित वोट बैंक अपने खाते में डालने में कामयाब रही है, वो दलित वोट बैंक जो बहुजन समाज पार्टी का मूल वोट बैंक माना जाता है. जानकारों ने कहा कि भाजपा कहीं न कहीं बसपा को कमजोर कर दलितों और पिछड़ों को अपने तरफ करने में कामयाब रही है लेकिन सोमवार को बसपा सांसद अफजाल अंसारी ने कड़े लहजे में इसका जवाब दिया.
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खैर धर्म कि राजनीति ने आज राजनीति के रणनीति को बदल दिया है. लेकिन इस बिच बड़ी खबर आई कि मंदिर बनने वालों का समर्थन करने वाले खुद मंदिर निर्माण का विरोध कर रहे हैं. जी हाँ हम बात कर रहे हैं पिछड़ों के हित बात का दावा करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की. एक तरफ जहाँ ओम प्रकाश राजभर और उनके बेटों की नजदीकियां भारतीय जनता पार्टी से बढती जा रही है तो वहीँ उनकी तरफ से मंदिर का अपमान भी किया जा रहा है. ये आरोप समाजसेवी आशु राय ने लगाया. आशु राय ने बातचीत का ऑडियो भी वायरल किया. जिसमे ओम प्रकाश राजभर के बेटे कहते हैं कि न हम मंदिर के नाम पर वोट मांगते हैं और न ही चंदा देते हैं. सवाल ये है कि क्या मंदिर को मानते भी हैं या नहीं.
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