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बदलती काशी (कविता)

अभिनेंद्र की कलम से…

अद्भुत अनंत, यह मानवता की परिभाषा है

आस्था धर्म है यही तो जीवन की आशा है

बदलते कर्म, धुलते पाप

मां गंगा की गोद में नए जीवन की अभिलाषा है

वरुणा से लेकर अस्सी तक

नए काशी की बदलती नई परिभाषा है।

लेकिन कुछ हुआ था इतिहास में

अधर्म को बढ़ाने की आस में

गैरों को लेकर विश्वास में

इमारतें बदली, तस्वीर बदलें

बदल दिया एकता की परिभाषा।।

गंगा को जमुना से जमुना को गंगा से

बदल गई थी तहजीब की परिभाषा।।

गुलामी की एक ऐसी आंधी

जिसमें डर भी था, खून भी और मौत भी

जिसने बदल दी धर्म की परिभाषा।।

अब काशी की तस्वीर बदल रही है

अब हजारों वर्ष की पुरानी संस्कृति में

गुम हो जाने की आशा है

यही तो अद्भुत अनंत मानवता की परिभाषा है।।

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