पुरे विश्व की निगाह टी20 विश्व कप पर टिकी हुई थी. सेमी फाइनल में पकिस्तान न्यूजीलैंड को हराकर फाइनल में पहुँच गया. उम्मीद थी कि इस बार भरात और पकिस्तान का फाइनल होगा. लेकिन सेमी फाइनल में इंग्लैंड ने भारत को हरा दिया. भारत वासियों का सपना टूट गया. लोग कोसने लगे.
वो कहते हैं आकर्षण के पीछे दुनिया भागती है लेकिन असली हीरे को पीछे छोड़ जाती है. क्रिकेट अब हाई प्रोफाइल गेम बन चूका है. खिलाडी जीते या हारे हर मैच करोड़ों का होता है. खिलाडी अब खेलने के साथ एक्टर भी बन गए हैं. लेकिन जो खेल देश का नाम रोशन कर रहा है. जिस खेल में तकनीक है, जिस खेल का हर पल चुनौतियों से भरा हुआ है, जो खेल देश का नाम रोशन कर रहा है, जो खेल भारत का राष्ट्रिय खेल है, उस खेल का क्या कोई मेल नहीं.
जी हाँ Hockey. हॉकी में लगातार भारत की स्थिति मजबूत होती जा रही है. खिलाडी गोल्ड जीत भारत का नाम विश्व में रोशन कर रहे हैं. जहाँ एक तरफ देश भारतीय क्रिकेट टीम से इसलिए नाराज था कि वो टी20 विश्व कप फाइनल में नहीं पहुँच पाएं तो उत्तर प्रदेश का गाजीपुर खुशियाँ मन रहा था क्योंकि यहाँ हॉकी में खिलाडियों ने कमाल कर दिया था. गाजीपुर का करमपुर स्टेडियम हॉकी खिलाडियों का जन्मदाता बनकर उभर चूका है. जहाँ भारतीय हॉकी टीम में करमपुर स्टेडियम से उत्तम सिंह, ओलंपियन ललित उपाध्याय, राजकुमार पाल, राहुल राजभर, अजीत पाण्डेय जैसे खिलाडी शामिल हैं और देश के लिए गोल्ड मेडल ला रहे हैं तो इस स्टेडियम से तैयार हुई नई फसल ने लखनऊ के केडी सिंह बाबू सोसाइटी की ओर से आयोजित पांच दिवसीय 14वीं पद्मश्री जमनलाल शर्मा मेमोरियल राज्यस्तरीय सब जूनियर हाकी प्रतियोगिता जीत ली। खिताबी मुकाबला मंगलवार को मेघबरन सिंह एकेडमी करमपुर और यूपी कालेज वाराणसी के बीच खेला गया। इसमें करमपुर की टीम ने 1-0 के अंतर से बाजी मार ली। करमपुर की ओर से गोल पुनीत पाल ने किया। इस प्रतियोगिता में 9 से 14 वर्ष उम्र के खिलाडियों ने प्रतिभाग किया था.
गुरुवार को सिधौना से बाइक सवार युवाओं ने करमपुर के सब जुनियर हॉकी टीम का स्वागत किया और फिर जुलूस के रुप में सिधौना से सैदपुर और औड़िहार होकर करमपुर स्टेडियम में पहुंचे। जीप पर सवार करमपुर के सब जुनियर हॉकी टीम के खिलाडियों को फूल माला पहनाकर उनका स्वागत किया। इसके साथ ही टीम ने तेजबहादुर सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित किया और नमन करते हुए इस जीत को उन्हें समर्पित किया। स्टेडियम के डायरेक्टर अनिकेत सिंह का कहना है कि स्टेडियम चाइना बम्बू की तरह है जिसकी कई साल तक देख रेख करने और खाद देने के बाद रिजल्ट नहीं आता लेकिन हताश न होकर संघर्ष और निरंतर मेहनत करते रहने से ये पांच साल बाद अचानक से कुछ हफ़्तों में ही करीब 80 फीट तक ऊँचा हो जाता है. कुछ ऐसा ही संघर्ष स्टेडियम के जन्मदाता हमारे बड़े पिता जी स्वर्गीय तेज बहादुर सिंह ने किया.
दरअसल मेघबरन स्टेडियम करमपुर स्वर्गीय तेज बहादुर सिंह के संघर्षों का प्रतिक है. तेजू भैया के नाम से प्रसिद्ध स्वर्गीय तेज बहादुर सिंह ने बंजर जमीन पर बिना किसी लोभ के गाँव के बच्चों को हॉकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया था. वो पशु पालन कर खिलाडियों के दिश का इन्तेजाम करते थे, खिलाडियों को अपने खर्च पर चना और अंडा खिलाकर मजबूत बनाते थे. उनका सपना था कि करमपुर देश में नाम रोशन करेगा. देश के कोने कोने से खिलाडी यहाँ सिखने आयेंगें. उन्होंने न जाती और धर्म कि भावना से ऊपर उठकर एक नई प्रथा की शुरुवात की और ये कारवां बढ़ता गया. आज करमपुर स्टेडियम के खिलाडियों ने भारतीय हॉकी टीम को शिखर पर पहुंचा दिया है.
स्वर्गीय तेज बहादुर सिंह के भाई पूर्व सांसद राधे मोहन सिंह कहते हैं कि सवर्ण से ज्यादा यहाँ अनुसूचित जाति, राजभर और यादव समाज इत्यादि के बच्चे हॉकी का हुनर सीख देश का नाम रोशन कर रहे हैं. इस स्टेडियम से करीब 700 से ज्यादा खिलाडी आज सरकारी नौकरियों में हैं.
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