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तवायफों का गाँव बसुका? अफवाह या सच? सामने आया नया विवाद…

सैकड़ों वर्षों पूर्व काशी और पटना के बिच एक महफ़िल सजती थी. जहाँ बड़े बड़े लोग नृत्य कला का आनद लेने जाते थे. ग़ज़ल और ठुमरी की कला से इस स्थान की अलग पहचान थी. इस जगह को कभी द विलेज ऑफ़ तवायफ यानि तवायफों की बस्ती भी कहा जाता था. जो बसुका के नाम से विख्यात हुआ. कला – संगीत हमारे समाज का अटूट अंग है. लेकिन ये तब तक सही जब तक इसमें अश्लीलता न हो. क्योंकि समाज में अश्लीलता को सबसे निम्न स्थान दिया गया है.

कद्रदानो की कमी और आधुनिकता के चलते आज यह परम्परा लुप्त होती जा रही है। कहा जाता है कि गाजीपुर के बसुका गांव में नाच गाने और तवायफों को बसाने का सिलसिला नवाबों के जमाने में शुरू हुआ था। जब इलाके के रईस अपना दिल बहलाने के लिए कोठों पर जाया करते थे। तवायफ से सम्बन्ध रखना उस समय में रईसी मानी जाती थी और इन कोठों पर जवान होने वाली लड़कियों को इंतेजार उस कद्रदान का रहता था जो इनकी नथ उतार कर इनकी जिममेदारी लेता था। नथ उतारने के लिए कद्रदान को रकम चुकानी पड़ती थी। इस तरह तवायफें अपने हुनर से रईसों का दिल बहलाया करती थी और बदले कद्रदान उनका खर्च उठाया करते थे। किन्तु वक्त बदलने के साथ साथ तवायफों की रवायतों में भी फर्क आया। अब न रईस रहे और न जमींदारों की जमींदारी। धीरे धीरे तवायफों के कद्रदानों में कमी आ गई।
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दरसल सामाजिक आधार पर इस गाँव को समझने की जरुरत है. जानकारी के अनुसार बसुका गाँव की आबादी करीब 20 हज़ार है और तवायफों की एक बस्ती है जो गाँव के पश्चिम तरफ है और वो कुल आबादी का करीब 4 फिसद है. यानि कहने को तो ये गाँव तवायफों के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन सत्य ये है कि बसुका को तवायफों का गाँव नहीं कहा जा सकता. क्योंकि गाँव के करीब 96 फिसद लोगों का सम्बन्ध तवायफों से नहीं है.

पिछले दिनों नृत्य करने वाली महिलायें उपजिलाधिकारी के पास पहुंची उन्होंने कहा कि हमारे गाँव के प्रधान हमसे रंगदारी मांग रहे हैं. हमारे ऊपर वैश्यावृति का आरोप लगा रहे हैं. उपजिलाधिकारी ने गलत काम नहीं करने को कहा और नृत्य कला करने की अनुमति दे दी. खैर सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय में सेक्स वर्कर्स को प्रताड़ित न करने की बात कही गई है. अब जाहिर सी बात है कि महिलाएं नृत कला की बात कर रही हैं और ग्राम प्रधान शोएब अली, वैश्यावृति का आरोप लगा रहे हैं. अब प्रधान तो सुप्रीम कोर्ट से ऊपर हो नहीं सकते. लेकिन सवाल ये है कि आखिर प्रधान चाहते क्या हैं?

दरअसल ग्राम प्रधान और स्थानीय जनता का कहना है कि जैसे किसी स्कूल के बगल में या रियासी इलाकों शराब की दूकान नहीं हो सकती. इसका छोटे बच्चों के ऊपर गलत प्रभाव पड़ता है वैसे ही तवायफों को अपना काम गाँव से बहार करना चाहिए. हम नए भारत के साथ आगे बढ़ रहे हैं. हम बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं. गाँव कि लड़कियां टॉप कर रही हैं. हम चाहते हैं की हमारे डॉक्टर बने, इंजिनियर बने, अधिकारी बने. यदि तवायफ यहाँ ऐसा काम करेंगी तो इस गाँव का कभी विकास नहीं हो पायेगा.

ये पूरा मामला कैसे शुरू हुआ इसको समझते हैं. जब हमारी टीम बसुका गाँव पहुंची तो असली कहानी तब समझ में आई. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ नाच गाने और मुजरे के पीछे देह व्यापार का धंधा चलता है. रात को दूर दराज से लोग यहाँ आते हैं शराब के नशे में आते जाते लोगों से अभद्र व्यवहार करते हैं. किसी के भी दरवाजे पर आराजकता फैलाते है. रात एनी लोगों के दरवाजें को पीटने लगते है. अन्य लड़कियों को भी छेड़ते हैं. यहीं नहीं ग्राम प्रधान और अन्य गाँव वालों का आरोप है कि जो लोग नाच गाना करती हैं उनमे कई तवायफें अश्लील विडियो बनती हैं और उसे मोबाइल पर भेजती हैं. इन विडियो में वो शारीरिक सम्बन्ध बनाती हुई नज़र आती हैं. जिसकी वजह से गाँव कि बदनामी हो रही है.

गाँव वालों का कहना है कि ये तवायफें सक्षम हैं, इनके बड़े बड़े मकान हैं, कई गाड़ियाँ हैं, गाँव के बहार दुकानें है जिसको इन्होने किराये पर दिया है, बड़े शहरों में फ्लैट भी हैं. इनके सामने रोजी रोजगार का संकट नहीं है, गाँव वालों का कहना है कि हम चाहते हैं कि ये मुख्य धारा से जुडें. अज योगी जी और मोदी जी के नेतृत्व में देश बदल रहा है. उनका कहना है कि हम इनके फंड इकठ्ठा करेगें. इनके बच्चों को पढ़ाने कि जिम्मेदारी हमारी है.

गाँव वाले कहते हैं कि चिंता इस बात कि है कि अब इनके घरों में कुछ बच्चियां जवान हो रही हैं और वो उन बच्चियों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं. इसे रोकना जरुरी है. नाचना और गाना गलत नहीं है लेकिन समाज में अश्लीलता फैलाना गलत है. अब इनको ये सब छोड़ आगे बढ़ना चाहिए.

हमारा संविधान और कानून हमें स्वतंत्रता का अधिकार देता है और बसुका गाँव के लोग तवायफों के स्वतंत्रता से खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं बल्कि उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ उन्हें नए भारत के साथ जोड़ना चाहते हैं.

बसुका गाँव में हमने तवायफों से संपर्क करने की कोशिश की, कुछ ने हमसे बात भी किया लेकिन वो कैमरे पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं थी. इस समाज के बहुत लोग तो हमें देखते ही भागने लगे.

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