यदि आपको पता हो कि कोई पूल छतिग्रस्त है तो क्या आप उस पर जायेगें? ऐसी खबरों से सांसें तेज़ चलने लगती हैं लेकिन हवा भी तो सांस लेने लायक नहीं है। इतना ज़हर भर गया है कि मैटनी शो वाली मीडिया के किसी ऐंकर को आगे आना चाहिए और कहना चाहिए कि हवा में ज़हर के लिए हवा ज़िम्मेदार है। दिल्ली एनसीआर को ही देख लीजिये. हवा में इतना ज़हर है कि स्कूलों को भी बंद कर दिया गया. अब घर पर ही जहरीली हवा में सांस लें, खैर हिन्दू मुस्लिम डिबेट का ज़हर पी कर जनता जब मीडिया का मैटिनी शो देख सकती है तो दिल्ली की ज़हरीली हवां में सांस क्यों नहीं ले सकती है। कई साल तक मीडिया का मैटिनी शो आपको हर बात के लिए विपक्ष को ज़िम्मेदार बताता रहा,अब वह जनता को ही ज़िम्मेदार बता रहा है क्योंकि वह जानता है कि सवाल पूछते ही जनता भी विपक्ष बन जाती है। गुरूवार को खबर आई कि पुलिस ओरवा कंपनी के दफ्तर गई थी। दफ्तर पर ताला लटका था। वही गुजरात के मोरबा के पूल वाली ओरवा कंपनी.
कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने एक किताब लिखी है। इस किताब को पढ़ने से पता चलता है कि घड़ी बनाने वाली कंपनी के मालिक भारत के लोकतंत्र और उसकी चुनौतियों के बारे में क्या राय रखते हैं।
इस किताब के कवर पर ओरेवा घड़ी कंपनी के मालिक जयसुख पटेल हैं। गुजराती भाषा में लिखी गई इस किताब के 179 पन्नों में जयसुख पटेल देश की समस्या और उसका समाधान बताते हैं।जयसुख पटेल ने लिखा है कि मुझे लग रहा है कि करप्शन के चक्कर में भारत को सिर्फ डिक्केटर ही मुक्त करा सकता है और देश में ऐसे लोगों की ज़रूरत है। क्या हमारा सिस्टम डेमोक्रेसी के लायक है? किताब का नाम है समस्या और समाधान। लगता है जयसुख पटेल के हिसाब से देश को तानाशाही से ही दुःख मिल सकता है.
इस किताब में लिखी गई बातों को और पुल को लेकर कोर्ट में गुजरात पुलिस ने जो कहा है, एक साथ पढ़ा जाना चाहिए। तब अंदाज़ा मिलेगा कि कंपनी के प्रबंधन निदेशक जयसुख पटेल ने पुल की मरम्मत का काम कैसे हासिल किया होगा, सुरक्षा के नियमों के प्रति उनका क्या दृष्टिकोरण रहा होगा, जिसके बारे में गुजरात पुलिस कोर्ट में कहती है कि यह कंपनी इसके योग्य ही नहीं थी, इसके पास काबिल इंजीनियर तक नहीं थे। इस पुल के केबल को बदला नहीं गया, अगर बदला गया होता तो लोगों की जान नहीं जाती।
अब ये बातें हम नहीं कह रहे हैं, ख़बरों के अनुसार ये बातें कोर्ट में गुजरात पुलिस कह रही है. लेकिन इन बातों से क्या जनता को फर्क पड़ता है? मोरबा के हादसे में मासूम बच्चों की जान गई, कितने परिवार उजड़ गए. क्या इन बातों से किसी को फर्क पड़ता है? कई नए पूलों का उद्घाटन किया गया लेकिन इस पूल पर पर्दा डाला गया, क्या इन बातों से किसी को फर्क पड़ता है? उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में गंगा के ऊपर बने हमीद को ओवरलोड लोड वाहनों ने इतना छूट पहुँचाया कि वो कई बार छतिग्रस्त हुआ और कई बार उसी मरम्मत भी हुई, ओवरलोड वाहनों को रोकने के लिए बैरियर लगे गया कैमरा लगाया गया, आज वो कैमरा जमीन को निहारता है, क्या इन बातों से किसी को फर्क पड़ता है?
जब कोई बड़ी घटना घट जाएगी तब लोग अपनी कुर्सी से उठेंगें, घायलों के सम्मान को चाँद हज़ार के मुवाजे में ख़रीदा जायेगा, मृतकों के परिजन के आंशुओं की बोली लगेगी. क्या जिम्मेदारों को केवल अपने परिवार से प्यार है? क्या अपनी नौकरी और कुर्सी बचने के लिए वो अनगिनत लोगों को डाव पर लगाने को तैयार हैं?
मोरबी हादसे से सीख लेते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अधिकारीयों को निर्देश दिया कि प्रदेश के सभी पुलों की जाँच की जाये. सवाल ये हैं क्या अधिकारीयों ने पुलों का निरीक्षण किया या केवल औपचारिकता पूरी की. ओवरलोड वाहन चलने वालों की मानवता तो पहले ही मर चुकी है, क्या अब जिम्मेदार भी अपनी मानवता की बोली लगा रहे हैं?
CM Yogi से निवेदन है कि इस रिपोर्ट को अंत तक जरुर देखिएगा. अधिकारी कैसे सरकार को अँधेरे में रखते हैं शायद ये स्पष्ट हो जायेगा? गाजीपुर के हमीद सेतु पर ओवरलोडिंग रोकने के लिए कैमरा लगा हुआ है लेकिन वो कैमरा धरती माता को निहारता है, बगल में रजागंज पुलिस चौकी है, अब वहां के पुलिसकर्मी किसको निहारते हैं ये नहीं पता. क्योंकि लटका हुआ ये कैमरा उन्हें नज़र नहीं आता और अगर आता तो उनकी ईमानदारी भी नज़र आती.
ग़ाज़ीपुर जिले के विभिन्न पुलों के रख रखाव को लेकर खास सतर्कता बरतने का दावा किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि ग़ाज़ीपुर के सबसे बड़े पुल हमीद सेतु पर ओवरलोडिंग वाहनों के आवागमन पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी है।ग़ाज़ीपुर में गंगा नदी पर बने इस पुल की कई बार मरम्मत हो चुकी है।जबकि इंजीनियरों ने इस पुल पर भार ढोने की क्षमता में कमी आने की बात भी जाहिर की है।ऐसे में हमीद सेतु पर ओवर लोडिंग वाहनों के आवागमन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है, ऐसा दावा किया जा रहा जि ला प्रशासन का दावा है कि हमीद सेतु पर हाइट बैरियर और सीसीटीवी के जरिये निगरानी की जा रही है।जिससे किसी भी तरह के खतरे से बच जा सके।फिलहाल ग़ाज़ीपुर में अन्य किसी भी पुल को लेकर किसी भी तरह के टेक्निकल डैमेज की बात सामने नही आई है।लेकिन जिले के अन्य पुलों की भी जांच की जा रही है,और जिले के सभी पुलों के रखरखाव को लेकर सतर्कता बरती जा रही है।
इन दावों और जमीनी हकीकत के बिच कितना अंतर है, इसका आकलन अब जनता को ही करना है? जनता की चुप्पी उनके बविश्य को अन्धकार में धकेलती है और जनता का सवाल, उनके भविष्य को उज्जवल बनता है.
मैं सोच रहा था कि हर बात पर भ्रष्टचार को गले लगाने वालों की नींद क्या सुखद होती होगी? क्या वो अपने बच्चों को बताते होंगे कि बेटा आज मैंने इतने रूपये का भ्रष्टाचार किया. आज मैंने इतना बड़ा भ्रष्टाचार किया कि किसी के घर का चूल्हा नहीं जला. आज मैंने इतना बड़ा भ्रष्टाचार किया कि इलाज के आभाव में तुम्हारे ही जैसा किसी का बेटा था जो मर गया. लेकिन भ्रष्टाचार के इन पैसे से तुम सुख भोगना, विदेश में पढना ऐयाशी करना. मरने दो इनको, ये तो मरने के लिए ही बने हैं.
मैं सोच रहा था क्या ऐसा ही होता होगा?
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