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Ghazipur: कोर्ट के आदेश पर कोतवाल पर एफआईआर…

तय करना मुश्किल हो रहा है कि न्याय का मज़ाक उड़ रहा है या जनता का मज़ाक उड़ रहा है।जनता न्याय का मज़ाक उड़ा रही है या राजनीति ही जनता का। कहीं हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए कैदियों को बाहर आने पर माला पहनाया जा रहा है तो कहीं हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए कैदी के बाहर आने पर संत्सग सुना जा रहा है।यह कैसा संत्संग है जहां हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए व्यक्ति से धार्मिक उपदेश सुने जा रहे हैं। क्या धर्म की राजनीति नागरिकों को इतना कमज़ोर कर देती है कि वह धर्म के नाम पर यह सब देखना बंद कर देता है। क्या धर्म की राजनीति यही सिखाती है कि हत्या पाप नहीं है। बलात्कार पाप नहीं है।

अगर नहीं सिखाती है तब इन मामलों में देश की अदालत जब सज़ा सुना देती है तब फिर समाज में इनका इतना सम्मान कैसे हो सकता है। क्या जनता ने लिख कर दे दिया है कि हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए लोगों का राजनीतिक सम्मान किया जाए।अगर वह कैदी अपने धर्म का है तो उसका और सम्मान किया जाए। क्या जनता और नागिरक का इतना नैतिक पतन हो चुका है?

हरियाणा में हत्या और बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए गुरमीत सिंह उर्फ राम रहीम की सत्संग में बीजेपी के नेता जाते हैं, डिप्टी स्पीकर जाते हैं, क्या यही है नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प? जबकि गुरमीत सिंह पैरोल पर बाहर है।

गुजरात की बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार हुआ था, उनकी दो साल की बेटी और घर वालों को हत्या कर दी गई थी और अब गृह मंत्रालय के आदेश पर उन बलात्कारियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया, वो उस दिन जब देश आजादी का जश्न मना रहा था। क्या अब जनता निर्भया कांड के आक्रोश को भूल चुकी है, जब सरकार झुक गई और फिर गिर गई।

उत्तर प्रदेश के जनपद गाज़ीपुर के एक थानेदार को केवल इस लिए एफआईआर का आदेश हुआ क्योंकि उसने हत्यारों का पक्ष लिया और सबूत मिटाने की कोशिश की।

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गाजीपुर में अपर सत्र न्यायाधीश (तृतीय) संजय यादव ने गुरुवार को हत्या के मामले में दो सगे भाइयों और बाप समेत कुल चार को उम्रकैद की सजा सुनाई। यह मामला थाना भांवरकोल के शेरपुर खुर्द का था। इस मामले में न्यायाधीश ने तत्कालीन एसओ भांवरकोल विपीन सिंह को हत्यारों को बचाने की कोशिश में साक्ष्य मिटाने का दोषी माना और उनके विरुद्ध भी आईपीसी की धारा 201 के तहत केस दर्ज करने के लिए गाजीपुर के एसपी और डीजीपी को आदेशित किया।

घटना 30 दिसंबर 2015 की सुबह हुई थी। अभियोजन के मुताबिक ललन राय अपने दरवाजे पर बैठे थे। मौके पर पटीदार सरोज राय तथा प्रभात रंजन राय सहित ललन राय की पत्नी माधुरी राय भी मौजूद थीं। उसी बीच संजय राय और उनके पुत्र दामोदर राय उर्फ बड़क तथा दिगंबर राय उर्फ लाली के अलावा उत्कर्ष राय असलहे लेकर पहुंचे। उसके बाद उन लोगों ने ललन राय को लक्ष्य कर गोलियां दागनी शुरू कर दी। ललन राय सहित सरोज राय को गोली लगी मगर पेट में गोली लगने से ललन राय की गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। उन्हें जिला अस्पताल लाया गया। फिर उन्हें बीएचयू ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया गया। जहां इलाज के दौरान कुछ ही देर बाद उनका दम टूट गया।

इधर उस मामले में मृत ललन राय की पत्नी माधुरी राय ने सभी चार हमलावरों को नामजद करते हुए एफआईआर दर्ज कराई। सारे हत्यारोपितों को गिरफ्तार कर पुलिस जेल भेज दी मगर कुछ दिनों बाद बड़क राय को छोड़कर अन्य आरोपित जमानत पर जेल से बाहर आ गए।

उधर पुलिस ने विवेचना कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया। उसमें उत्कर्ष राय का नाम हटा दिया मगर कोर्ट ने उसे हत्यारोपित मानते हुए तलब कर लिया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश इस बात पर भी गौर किए कि चार्जशीट में दर्ज कथानक में हत्या में प्रयुक्त तमंचे का जिक्र है मगर धाराओं में आर्म्स एक्ट का उल्लेख नहीं है। लिहाजा न्यायाधीश ने माना कि विवेचक तत्कालीन एसओ भांवरकोल विपीन सिंह ने हत्यारोपितों को लाभ पहुंचाने के लिए साक्ष्य मिटाने की कोशिश की।

अभियोजन की ओर से कुल आठ गवाह पेश किए गए मगर उनमें दो चश्मदीद सरोज राय व प्रभात रंजन राय पक्षद्रोह कर गए। बावजूद सहायक शासकीय अधिवक्ता जयप्रकाश सिंह की दमदार, धारदार पैरवी पर न्यायाधीश ने सभी हत्यारोपितों को कसूरवार करार देते हुए 75-75 हजार रुपये के जुर्माने और आखिरी सांस तक कैद की सजा सुनाई। जुर्माने की कुल राशि का 60 फीसद हिस्सा मृत ललन राय की पत्नी माधुरी राय को मिलेगी।

मुकदमे की सुनवाई में दोषी पाए गए तत्कालीन एसओ विपीन सिंह गाजीपुर में तैनाती के वक्त तरक्की पाकर सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर बन गए थे और मौजूदा वक्त में वह मीरजापुर में देहात कोतवाली के एसएचओ हैं। गाजीपुर में अर्से बाद यह पहला मौका है जब हत्या के मामले में कोई पुलिस अफसर भी विवेचना में इस तरह दोषी माना गया है और उसके विरुद्ध भी केस दर्ज करने का आदेश हुआ है।

शेरपुर खुर्द में ललन राय की हत्या गड़ही की मछली मारने के विवाद में हुई थी। गांव में दामोदर उर्फ बड़क राय का काफी खौफ रहा है। यहां तक कि उसके खौफ के चलते घटना के बाद से पीड़ित परिवार गांव छोड़कर कहीं अन्यत्र रहने को मजबूर हो गया था।

विवेचना एक महत्वपूर्ण चीज है सूत्रों के हवाले से जानकारियां आती रहती हैं की विवेचना अधिकारी विवेचना में हेरफेर कर देता है मान लीजिए किसी की गिरफ्तारी कहीं और से हुई है और उसे दिखा कहीं और कर दिया जाता है। यह केस एक सबक है कि न्याय सबके साथ होता है और जब न्याय होता है तो अन्याय करने वालों को भोगना पड़ता है।

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