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मैडम और सर ने कुछ ऐसा किया कि खुल गई गाज़ीपुर के इस सरकारी स्कूल की पोल?

Special Report।। सामान्य रूप से 20000 प्रति माह कमाने वाला व्यक्ति जो अपने काम पर जाता है तो वह गाड़ी का भाड़ा देता है या अपने मोटरसाइकिल में पेट्रोल डलवाता है। महीने में उस व्यक्ति का घर के राशन और दवाइयों पर भी खर्च होता है। जाहिर सी बात है कि पहले के मुकाबले में व्यक्ति की आय तो नहीं बढ़ी लेकिन राशन का दाम महंगा हुआ और पेट्रोल भी महंगा हो गया। इन सब चीजों पर वह व्यक्ति टैक्स भरता है उसके बदले उसको सरकार की तरफ से उसको पुलिस द्वारा सुरक्षा मिलती है, आवागमन के लिए सड़कें मिलती हैं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी अस्पताल मिलते हैं और शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल मिलता है। अभी हम पुलिस सड़क और अस्पताल पर चर्चा नहीं करेंगे। हम बात करेंगे शिक्षा को लेकर क्या वाकई सरकारी स्कूल इस लायक हैं कि एक आम व्यक्ति अपने बच्चे को उसी स्कूल में प्रवेश दिला सके और उसे अच्छी शिक्षा मिल जाए? सरकार की मंशा तो जनहित में अच्छी सुविधाएं देने का है लेकिन क्या जमीन पर जो सरकारी कर्मचारी या अधिकारी हैं सरकार की मंशा को पूरा करते हैं या वह सरकार को धोखा देते हैं जिसका परिणाम यह होता है की आम जनमानस परेशान होता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह रिपोर्ट देखनी चाहिए कि जनपद गाजीपुर में अब तक तो जर्जर स्कूलों का मुद्दा सामने आता रहा है लेकिन अब जो खबर आ रही है वह बहुत गंभीर है। उन्हें देखना चाहिए कि किस तरह से सरकारी अध्यापक छात्रों को गलत शिक्षा दे रहे हैं किस तरह से सरकारी अध्यापकों को यह भी नहीं पता है कि उनका शिक्षा मंत्री कौन है? उनका बेसिक शिक्षा अधिकारी कौन है? और सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या ऐसे अध्यापकों की जांच उच्च अधिकारी करते भी नहीं है? क्या उच्च अधिकारी भी सरकार की आंखों में धूल झोंकते हैं? क्या ऐसे ही शिक्षा लेकर बच्चे अपना भविष्य सुधार पाएंगे?

यह खबर जनपद गाजीपुर के प्राथमिक विद्यालय नवापुरा कंपोजिट नगर क्षेत्र से है। यहां पर बच्चे जमीन पर बैठ का पढ़ते हैं यह तो चलो फिर भी भूल जाएं लेकिन यहां के प्रधानाध्यापक ज्ञान को आप शायद कभी नहीं भूल सकते।

प्रधानाध्यापक को संडे और मंडे की स्पेलिंग नहीं आती यहां तक की प्रधानाध्यापक के सामने ही बच्चे संडे और मंडे की सही स्पेलिंग बताते हैं। प्रधानाध्यापक को तो छोड़िए साहब यहां की एक अध्यापिका को यह भी नहीं पता कि उनके शिक्षा मंत्री कौन हैं और उनके बेसिक शिक्षा अधिकारी कौन है?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऑपरेशन कायाकल्प की सफलता का जिक्र करके गर्व महसूस करते, सभी प्रदेशवासियों को गर्व महसूस करना भी चाहिए लेकिन इस ऐसे स्कूल पर जिन अधिकारियों की नजर नहीं जाती वह कहीं ना कहीं सीएम योगी के सपनों को चोट पहुंचाते हैं और ये स्कूल कहीं ना कहीं सरकार के गुड गवर्नेंस पर धब्बा बन जाता है। शायद यही कारण है कि आज गरीब व्यक्ति जिसके पास पैसे नहीं हैं अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहता है, वह महंगी फीस देता है और कर्ज में डूब जाता है।

पांच सितंबर को प्रधानमंत्री स्कूल से संबंधित तीन ट्विट करते हैं आज, #TeachersDay पर मुझे एक नई पहल की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है – प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-श्री) योजना के तहत पूरे भारत में 14,500 स्कूलों का विकास और उन्नयन। ये मॉडल स्कूल बन जाएंगे, जो एनईपी की समग्र भावना को समाहित करेंगे। “पीएम-श्री स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने का एक आधुनिक, परिवर्तनकारी और समग्र तरीका होगा। इसमें खोज उन्मुख, ज्ञान-प्राप्ति केंद्रित शिक्षण पर जोर दिया जाएगा। नवीनतम तकनीक, स्मार्ट कक्षा, खेल और आधुनिक अवसंरचना पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा।”

प्रधानमंत्री ने शिक्षक दिवस के दिन इसे नई पहल बताया। जबकि ऐसे स्कूल की घोषणा पिछले साल के बजट भाषण में हो चुकी थी। फरवरी 2021 के बजट भाषण में निर्मला सीतारमन ने 15000 स्कूलों के बारे में एलान किया था। कहा था कि नई शिक्षा नीति के जितने भी गुण हैं, उन सभी से इन स्कूलों को लैस किया जाएगा।

यह सारी खबरें जून 2022 की हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बयान छपा है कि देश भर में 15,000 पीएम श्री स्कूल स्कूल स्थापित किए जाएंगे। 15 महीने बीत गए हैं मगर अभी भी शिक्षा मंत्री किए जाएंगे की बोली बोल रहे हैं। किए गए हैं, यह नहीं बता रहे हैं। 5 सितंबर 2022 को भी प्रधानमंत्री ट्टिट करते हैं कि पीएम श्री के तहत 14500 स्कूल बनाए जाएंगे। एक तो संख्या 15000 से 145000 कैसे हो गई, 500 स्कूल क्यों कम हो गए, इसी का जवाब नहीं है, लेकिन जो खबर फरवरी 2021 में और जून 2022 में हेडलाइन बन कर छप जाती है उसी खबर को छह सितंबर 2022 के दिन हेडलाइन के रुप में छापा जाता है। ताकि आशा का संचार होता रहे।

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