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क्या है ओम प्रकाश राजभर का गेम प्लान?

Special Report || समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) इन दिनों अपने बयानों को लेकर काफी सुर्खियों में छाये हुए हैं. सोमवार को गाजीपुर में ओपी राजभर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव उनके इर्द-गिर्द रहा, जिसे मीडिया ने भी बेहतर ढंग से दिखाया. यही नहीं राष्ट्रपति चुनाव में हमारे पास 6 विधायक थे, लेकिन देश की राजनीति में चर्चा के मामले में वो नंबर वन हैं. 

राजनीति का भी अजीब रंग है. कहीं ये बयान ओम प्रकाश राजभर का ओवर कॉन्फिडेंस तो नहीं है क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने सीएम योगी को भी मठ भेजने की बात कही थी है. रंग बदलते राजभर का रंग भी अजीब है. ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि अब 2024 का चुनाव आ रहा है, आप लोगों की निगाहों के साथ सबकी निगाहें हमारी ओर ही लगी हुई है तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा होना स्वाभाविक है. वहीं जब उनसे अखिलेश यादव के झाड़ फूंक वाले बयान पूछा गया तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि ‘वो अमेरिका के पढ़े लिखे हैं अगर वह झाड़-फूंक में विश्वास करें तो ये उनकी हताशा व निराशा है’. उन्होंने कहा कि आज पूरा विपक्ष ओम प्रकाश राजभर को ही निशाने पर ले रहा है क्योंकि हम अति पिछड़ों के लिए रोजगार की बात उठाते हैं, इसलिए लोग परेशान हैं.

सुभासपा अध्यक्ष ने संजय निषाद पर भी निशाना साधा और कहा कि वो हमारे बड़े भाई हैं, वो बीजेपी के मालिक नहीं हैं अपनी पार्टी की बात करें तो अच्छी बात है. उनका मत हो सकता है. ओमप्रकाश राजभर अपनी पार्टी का मालिक है. हम 25 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश को चार भागों में बांट कर अपने संगठन को मजबूत करने का काम कर रहे हैं.  प्रदेश के इन इलाकों में हम अपने संगठन को मजबूत करते रहे हैं और इन्हीं इलाकों से प्रदेश की सरकार बनती और बिगड़ती है.

पिछले दिनों ओम प्रकाश राजभर का वो बयान काफी सुर्खियों में रहा था जिसमें उन्होंने अखिलेश यादव के एसी कमरे में रहने की बात कही थी लेकिन अब 9 अगस्त से समाजवादी पार्टी गाजीपुर में पद यात्रा की शुरुआत कर रही है. इस पर ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि ये उनकी उपलब्धि है.

सवाल ये है कि ओम प्रकाश राजभर 2024 के लोकसभा में कहाँ खड़े नज़र आते हैं ये देखने वाली बात है. 2021 के एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में ओबीसी यानी पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 52 फीसदी है. इसी वजह से 1990 के बाद इस जाति का राजनीति में दबदबा बढ़ गया. खासतौर से यादव जाति का. पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा 11% मतदाता यादव समाज के हैं. और वहीँ पिछड़ा वोट बैंक में राजभर बिरादरी की आबादी 2 फ़ीसदी से कम है लेकिन पूर्वांचल के आधा दर्जन जनपदों पर इनका खासा असर है. इसके बड़े नेता के रूप में ओमप्रकाश राजभर और अनिल राजभर की गिनती की जाती है. अनिल राजभर भाजपा में हैं और ओम प्रकाश राजभर धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं.

2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 6 फीसदी यादव का वोट मिला था. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में 27 फ़ीसदी यादवों का वोट भाजपा को मिला. इस तरह यादव जाति में भी भाजपा ने सेंध लगा दी है जिसके चलते कहा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोट बैंक अब कम हो रहा है.

पिछड़ा वर्ग में यादव जाति के बाद सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाताओं की संख्या है. इस जाति के मतदाता दर्जनभर जनपदों में 12 फ़ीसदी तक हैं. वहीं वर्तमान में अपना दल कि इस जाति पर मजबूत पकड़ है जो भाजपा की सहयोगी पार्टी है. वहीं पिछड़ा वर्ग में मौर्य और कुशवाहा जाति की संख्या प्रदेश के 13 जिलों में सबसे ज्यादा है. वहीं वर्तमान में स्वामी प्रसाद मौर्या और केशव प्रसाद मौर्य इस जाति के बड़े नेता के रूप में बीजेपी में मंत्री हैं.

पिछड़ा वर्ग में बड़ी जाति के रूप में मल्लाह निषाद भी हैं. इस जाति की आबादी दर्जनभर जनपदों में सबसे ज्यादा है. गंगा किनारे बसे जनपदों में मल्लाह और निषाद समुदाय 6 से 10 फ़ीसदी है जो अपने संख्या के बलबूते चुनाव के परिणाम में बड़ा असर डालते हैं. वर्तमान में इस जाति के नेता के रूप में डॉक्टर संजय निषाद हैं जो भाजपा के साथ सरकार में शामिल है.

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