आपदा में अवसर तो आपने सुना ही होगा लेकिन यह तो नहीं सुना होगा कि आपदा आपके लिए थी और अवसर किसी और के लिए था. किसी और के लिए भी नहीं, प्राइवेट अस्पतालों के लिए. आपको तो याद ही होगा कोरोना के वक़्त किस तरह से प्राइवेट अस्पताल मरीज भारती के नाम लाखों रूपये एडवांस में जमा करवाते थे. ये सच है या नहीं?
लेकिन इसका जिम्मेदार कौन है? अगर सरकारी अस्पतालों हालत ठीक होती तो तालाबंदी में बर्बाद होते नौकरी और व्यापार के बिच लोगों को अपनों की जान बचाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में लाखों रूपये न देने पड़ते.
अवसर तो वाकई आया था मगर उन सभी के लिए नहीं जो गरीबी रेखा के नीचे धकेले जा रहे थे. जिनकी नौकरी चली गई थी. सैलरी आधी हो गई थी. उस वक्त अस्सी करोड़ लोग दो वक्त के भोजन के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना पर निर्भर थे, उन्हें उठकर खड़े होने और अवसर को गले लगाने का उपदेश नहीं दिया जा सकता था. बिना पूंजी और काम के कोई अरबपति तो नहीं बन सकता. बाकी बहुत सारे लोग तो इसी तरह आपदा से अवसर के दायरे से बाहर हो गए जब तालाबंदी ने उन्हें बेघर और बेरोजगार कर दिया. वे शहरों में किराये के घरों को छोड़कर अपने गांवों की तरफ पैदल चलने लगे. कुछ लू से मर गए तो कुछ ट्रेन और बस से टकराकर. तालाबंदी के कारण करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई. बाकी बहुत से लोग महामारी की दहशत से घिरे रहे.अस्पतालों के बाहर बिलख रहे थे, तड़प रहे थे. ऐसे लोगों के पास उस समय अवसरों का लाभ उठाने की क्या ही क्षमता बची होगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट आई कि भारत ने आधिकारिक रूप से मरने वालों की जितनी संख्या बताई है, उससे दस गुना ज़्यादा लोग मरे हैं. 47 लाख लोग मरे हैं. भारत सरकार ने इस नंबर को ठुकरा दिया और रिपोर्ट की आलोचना की. लेकिन जब उसी WHO ने आशा वर्करों की तारीफ की तब बड़े बड़े सत्ताधारी नेताओं ने भी स्वागत में ट्वीट किया.
आज भी सिस्टम सिस्टम से काम नहीं कर रहा है यदि व्यवस्थित ढंग से काम करता तो परेशानियों का सामना न करना पड़ता. यूपी के गाजीपुर में ट्रैफिक पुलिस तो अपनी जिमीदारियों का निर्वहन ढंग से कर रही है लेकिन अब पुलिस तो सडकें नहीं बना सकती. गाजीपुर में सड़कों का चौडीकरण है, न सड़कों के बिच में डीवाईडर और न सिग्लन लाइट्स. अगर इस बेसिक चीज़ पर स्थानीय जनप्रतिनिधि या प्रशासन ध्यान देता तो आज प्रशांत की जान नहीं जाती.
यूपी के गाजीपुर सदर कोतवाली क्षेत्र के गाजीपुर-वाराणसी मार्ग पर तुलसीपुर स्थित एक ढाबा के पास मंगलवार की शाम आटो-बाइक की टक्कर में बाइक सवार छात्र नेता प्रशांत की मौत हो गई। वह माता-पिता का इकलौता पुत्र था। वहीँ घटना में घायल एक अन्य युवक का जिला अस्पताल में उपचार चल रहा है। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। बुधवार को प्रशांत का अंतिम संस्कार किया गया.
हेतिमपुर गांव निवासी विरेंद्र सिंह यादव का पुत्र व पीजी कालेज का पूर्व महामंत्री प्रशांत सिंह यादव (25) अपने मित्र लालनपुर निवासी विजेंद्र यादव के साथ बाइक से शहर से गांव जा रहा था। इसी दौरान गाजीपुर-वाराणसी मार्ग पर तुलसीपुर के पास अचानक सवारियों से भरी आटो को चालक ने मोड़ दिया, जिससे सामने से रहे बाइक की आटो से टक्कर हो गई। इस घटना में बाइक सवार दोनों युवक गंभीर रूप से घायल हो गए। स्थानीय लोगों ने आनन-फानन में दोनों को उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने प्रशांत को मृत घोषित कर दिया, जबकि विजेंद्र का उपचार चल रहा है। सूचना मिलने पर पुलिस ने शव के साथ ही आटो को कब्जे में ले लिया। जानकारी होने पर परिवार के लोग भी जिला अस्पताल पहुंच गए। प्रशांत के शव पर नजर पड़ते ही चीख-पुकार करने लगे। प्रशांत अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। सूचना पर सदर विधायक जैकिशान साहू के प्रतिनिधि रामनारायण यादव भी मौके पर पहुंच गए। पुलिस ने लिखा-पढ़ी के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। प्रशांत की मौत से छात्र नेताओं सहित गांववासियों में शोक की लहर दौड़ गई।
प्रशांत की मौत का जिम्मेदार कौन है ऑटो या खोखला सिस्टम? जहाँ पर प्रशांत दुर्घटना का शिकार हुआ वहां की सड़क चुदिकरण करने के लिए काफी जगह है, लेकिन न ही वहां सड़क चौड़ी, ना ही सड़क के बिच में डीवाईडर है और ना ही दुर्घटना से बचाने के लिए कोई यु टर्न, सिग्नल या गोल चक्कर है. शायद ये सब होता तो वो ऑटो अचानक से नहीं मुड़ता और नहीं प्रशांत की जान जाती. प्रशांत जैसे ना जाने कितने ऐसी ही दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. लेकिन सिस्टम अपने ही सिस्टम को बचाने में लगा रहता है.
वर्तमान परिस्थियों में संघर्ष दो तरीके के हैं. नौकरशाह को अपनी नौकरी बचानी है लोअर क्लास और लोअर मिडिल क्लास को अपना रोजगार. स्वार्थ दोनों तरफ है नौकरशाह निर्देशों का पालन का करे तो नौकरी पर बन आएगी, जनता विरोध न करें तो भूखे मरेगी. इन संघर्षों का जिम्मेदार कौन है? क्योंकि कई सारे नौकरशाह भी तो ऐसी ही किसी लोअर क्लास और लोअर मिडिल क्लास से निकल कर आते हैं. इन संघर्षों को व्यवस्थित किया जा सकता है लेकिन सब अपने अपने निंजी स्वार्थ में इस तरह गम हो गये हैं की विरोध और ताकत के बिच का विकल्प ताकत से दब जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में इस वक़्त अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है. इस अवैध कब्जों और अतिक्रमणों को हटाया जा रहा है. इसमें सबसे ज्यादा पटरी पर रेडी या ठेला लगाने वाले, सड़क किनारे सब्जी या अन्य सामान बेचने वाला लोअर क्लास परेशान हो रहा है, कुछ ऐसे भी जिनके दूकान थोडा हिस्सा बहार की और आ रहा है, उसको भी हटाया जा रहा है. साथ ही सड़क किनारे गाड़ी खड़ा करने पर भी परेशानी है.
यदि स्थानीय प्रशासन द्वारा कहीं ऐसी व्यवस्था की गई है जहाँ सड़क किनारे ठेला या रेडी वाले या जमीं पर बैठ कर सब्जी या अन्य सामान बेचने वाले अपना रोजगार कर सके तो फिर ठीक है उन्हें वहां व्यवस्थित कर दिया जाये, यदि नहीं तो फिर अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में क्या उन गरीबों के रोजगार की बलि चढ़ाई जा रही है. यदि पार्किंग की व्यवस्था है सड़क पर गाड़ी खड़ा करना अनुचित होगा. यदि नहीं है तो ये जुर्म कैसे ?
पहले भी अतिक्रमण हटाये जाते थे, लेकिन व्यवस्था ढंग से नहीं दी जाती थी, नतीजा फिर अतिक्रमण हो जाता था. अतिक्रमण हटाने से लेकर अतिक्रमण होने के बिच का जिम्मेदार कौन है. जब अतिक्रमण हटा दिया गया हो तो प्रशानिक अमला के रहते दुबारा अतिक्रमण हो कैसे जाता है? माजरा क्या है?
यूपी के जनपद गाजीपुर में भी अतिक्रमण हटाओं अभियान चला, जमनिया, कासिमाबाद सहित शहरी क्षेत्र में भी अतिक्रमण हटाया गया. अब गाजीपुर शहरी क्षेत्र में पार्किंग की व्यवस्था नगरपालिका द्वारा नहीं की गई है तो गाड़ियाँ सड़क किनारे ही खड़ी होती हैं, अब यदि प्रशासनिक अमला नहीं चाहता की सड़क किनारे गाड़ी खड़ी हों तो फिर जनता पैदल ही मार्केटिंग करे. शहर स्थित मिश्रबाजार में अतिक्रमण को हटाया गया, जिनकी दूकान आगे थी उन पर बुल्ड़ोजर चल गया. रेडी पटरी वालों को हटा दिया गया. प्रशासनिक अमले ने अपना काम कर दिया. नौकरी भी बच गई. निर्देश का पालन भी हो गया.
लेकिन क्या किसी ने सवाल किया कि इतने सालों में जनसँख्या बढती गई बाज़ार बड़ा हो गया तो पार्किंग की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? मार्किट में जिन लोगों 2 या 4 मंजिला मॉल बनवा लिया है उन्होंने पार्किंग क्यों नहीं बनवाई? क्या उनके उस बिल्डिंग बनने देने में जिम्मेदार अधिकारी की जिम्मेदारी नहीं थी या इसमे भी गोलमाल था. मिश्रबाजार से सब्जी मार्किट हटाकर रौज़ा ओवेरब्रिज के निचे व्यवस्थित करने की बात की गई थी, वो तो हो ना सका, साथ ही अफीम फैक्ट्री के पास भी अतिक्रमण होने लगा.
शहर को स्मार्ट और व्यवस्थित बनाना ही होगा लेकिन कोरम पूरा करने से शहर व्यवस्थित नहीं होगा. सबसे पहले मार्किट के पास पार्किंग की व्यवस्था की जाये. स्ट्रीट मार्किट को एक खाली स्थान पर बसाया जाये, सड़कों का चौडीकरण हो, सर्विसे लेन बनाया जाये. जहाँ एकल मार्ग की आवयश्कता उसे किया जाये, जगह जगह ट्रैफिक सिग्नल का इन्तेजाम किया जाये. फिर जो इसका उलंघन करे उसे दण्डित भी किया जाये. ऐसे बिना इन्तेजाम के किसी के रोजगार को उजाड़ना शायद उचित नहीं है.
जब से बुलडोज़र इंसाफ का रूप बनकर आया है तब से आपने सुना है कि सत्ताधारी दल के किसी विधायक, नेता के घर या दुकान पर इसकी नज़र गई हो, क्या अब यह मान लिया जाए कि इनमें से किसी ने अतिक्रमण ही नहीं किया है. पंजाब में मुख्यमंत्री मान अपने मंत्री का स्टिंग आपरेशन कर गए. स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला कमीशन मांग रहे थे.अब वो मंत्री पद से हटा दिए गए और जेल में हैं. क्या कोई और मुख्यमंत्री ऐसा कर पायेगा? पंजाब में तो शायद विधायकों की पेंशन भी बंद हो गई.
ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International) की रिपोर्ट. जी हाँ ये रिपोर्ट कई मीडिया प्लात्फोर पर प्रकाशित हुई है. दर्द से मुनाफ़ा, आक्सफैम की रिपोर्ट का नाम है. इसमे लिखा है कि पिछले कई दशकों की मेहनत से दुनिया भर में करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया था, उस मेहनत पर पानी फिर गया. कोरोना के दौरान हर 33 घंटे में 10 लाख लोग अत्यंत गरीबी में धकेले जाने लगे. क्या ये दस लाख लोग इसलिए अत्यंत गरीबी में धकेले गए, क्योंकि अवसरों का लाभ नहीं उठा रहे थे? अगर कोई इतना भोला है तो उसे भोला ही रहने देना चाहिए.
दावोस में जमा हुए वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम के सदस्यों की गरमी का अंदाजा आपको नहीं होगा, इनमें से कई कोरोना के दो साल में कई गुना अमीर हो गए हैं. कैसे अमीर हुए, इसके बारे में दर्द से मुनाफा रिपोर्ट में लिखा है कि जब दुनिया भर की सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने ग्लोबल अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पैसे डालने शुरू किए तब उसका लाभ इन अरबपतियों ने उठाया. कर्मचारियों को निकाल दिया. जो रह गए उनकी सैलरी कम कर दी, काम उतना ही हुआ और मुनाफा कई गुना. लिहाजा दो साल में दुनिया भर में 573 नए अरबपति पैदा हो गए. इनमें से 40 नए अरबपतियों का संबंध दवा के कारोबार से है जो टीका, इलाज, टेस्ट पर एकाधिकार रखते हैं. खाने-पीने की चीज़ों के कारोबार से जुड़े 62 नए अरबपति पैदा हुए हैं. कारगिल परिवार दुनिया में खेती के कारोबार पर एकाधिकार रखता है, सत्तर परसेंट मार्केट इसके कब्ज़े में है. इस एक परिवार में महामारी से पहले आठ अरबपति थे, महामारी के बाद 12 अरबपति हो गए. इस रिपोर्ट में लिखा है कि एलॉन मस्क के पास इतना पैसा है कि 90 प्रतिशत दौलत नष्ट भी हो जाए तब भी मस्क दुनिया के चोटी के अमीरों में ही रहेंगे.सोचिए 23 साल में इनकी दौलत जितनी बढ़ी है, उसके बराबर में दो साल के भीतर बढ़ी है. मतलब किस रफ्तार से कुछ लोग कमा रहे थे. क्या आप भी इस दौरान अमीर हुए या उसके बदले आप व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के असर में हर जगह खोदकर कुछ निकालने की योजना बना रहे थे.
जमीन के नीचे कुछ नहीं है, कुछ है तो उन नीतियों के पीछे जो आपको जमीन के नीचे गाड़ रही हैं. यह सबसे बड़ा झूठ है कि मानवता दुनिया को एक करती है, दुनिया को केवल ये चंद अरबपति एक करते हैं जो इसे एक मैदान समझकर चारों तरफ एक नीतियां बनवा रहे हैं. इनकी गिनती कुछ सौ में हैं मगर इन्हीं की एकता अब मानवता की एकता है. इस रिपोर्ट में लिखा है कि चंद लोगों के हाथ में सारी दौलत आ जाने से राजनीति और मीडिया भ्रष्ट हो जाएंगे. चंद लोग अपनी दौलत से मीडिया और राजनीतिक दल को चलाएंगे. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि आम जनता के साथ क्या होगा. एक दिन वीडियो वायरल कराने का अधिकार और साधन भी आपके हाथ से जाने वाला है. मेरी इस बात को लिखकर पर्स में रख लीजिए. मीडिया के खत्म होने के बाद अगला हमला वायरल कराने वालों पर होगा. मतलब एक ऐसा जमाना आएगा जब आपके पास बल्ब की रोशनी तो होगी मगर उसके नीचे आप अंधेरे में होंगे. केवल विज्ञापन होगा और उसके भीतर एक चमकदार दुनिया होगी.
एक सरकारी विज्ञापन यू ट्यूब पर है. इस वीडियो की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि इसमें जो लोग गरीब कल्याण योजना के लिए लाइन में खड़े हैं, वे गरीब नजर नहीं आते हैं. यूपी की 24 करोड़ आबादी मानी जाती है, इसमें से 15 करोड़ लोग दो वक्त का अनाज नहीं खरीद सकते हैं. यह संख्या बताती है कि भारत के एक बड़े प्रदेश में आर्थिक असमानता कितनी भयावह है. लेकिन आज का संदर्भ असमानता के अलावा पात्रता का भी है, जिसे लेकर यूपी में राशन कार्ड धारकों के बीच हंगामा मचा हुआ है.