बेरोजगारी और जमीनी विकास विस्फोटक हो गया है। इसके फटने से धर्म का मुद्दा ही बचा सकता है क्योंकि उसी में इन नौजवानों को भटकाने की ताकत है। सांप्रदायिक होने के सुख के सामने बेरोजगार और विकासहीन होने का दुख कुछ भी नहीं है। इसलिए हर चुनाव में जमीनी विकास और बेरोजगारी का मुद्दा गुम हो जाता है
राजनीति करने वाले भी दो तरह के लोग होते हैं एक वह जो चुनाव में नए-नए वादे करते हैं और फिर उसे जुमला बताते हैं दूसरे वह जो आम जनमानस की जमीनी लड़ाई को लड़ते हैं लेकिन शायद चुनाव ही नहीं जीत पाते।
समाज की रक्षा करने वाले भी दो तरह के होते हैं। एक वह जो अपने व्यवहार अपने कार्य से समाज का उद्धार करते हैं और दूसरे को जो अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठाकर कानून को तार-तार करते हैं।
अब उदाहरण के लिए गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक राम बदन सिंह को ही ले लीजिए। पुलिस अधीक्षक राम बदन सिंह को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए गोल्ड मेडल दिया गया है।
दूसरी तरफ प्रयागराज की इस घटना को ले लीजिए। प्रयागराज में रेलवे की एनटीपीसी भर्ती परीक्षा के परिणाम में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए अभ्यर्थियों ने मंगलवार को जमकर हंगामा किया। छोटा बघाड़ा में जुलूस निकालने के साथ प्रयागराज स्टेशन पर ट्रेन भी रोक दी। पुलिस के लाठीचार्ज करने पर उन्होंने पथराव भी कर दिया। फिर क्या था जब पुलिस ने खदेड़ा तो छात्र लॉज में घुस गए और फिर पुलिस लॉज में पहुंच गई। पुलिस ने लॉज के दरवाजे तोड़कर कर छात्रों पर लाठियां बरसाईं जिसमें कई छात्रों को चोटें भी आईं। खबरों के अनुसार मौके पर जीआरपी के जवानों ने छात्रों को समझाने की कोशिश भी की लेकिन वह पीछे हटने को तैयार नहीं थे कुछ ही देर में कई थानों की फोर्स वहां पहुंच गई। अब क्या यह कानून अनुचित था। पुलिस मजबूर थी या छात्र। इसका फैसला तो अब आपको ही करना है। लेकिन इस बात पर गौर करने की भी जरूरत है कि सरकार जब चाहा जाती है तो अपने वादों को पूरा जरूर करती है अब इस वक्त कई सारी परीक्षाएं रद्द हुई लेकिन सरकार ने वादा किया था कि यूपीटेट की परीक्षा तो होकर रहेगी।
बात ताकत की है तो मत देने की ताकत जनता के पास है। लेकिन सत्ता की ताकत की परिभाषा अलग है जिसका जीता जागता उदाहरण एंटी माफिया मुहिम है। बात सत्ता की हो रही है तो आगामी विधानसभा चुनाव में जो जीतेगा सत्ता उसकी होगी लेकिन राजनीति खींचातानी खत्म नहीं हो रही है।
जमानिया से समाजवादी पार्टी के दावेदार और समाजवादी पार्टी में ही पूर्व मंत्री रह चुके ओमप्रकाश सिंह का ऑडियो तेजी से वायरल हो रहा है। ऑडियो में वो जमनिया विधानसभा के भाजपा सोशल मीडिया संयोजक से बात करते हुए नजर आ रहे हैं।
देखिए पूरी रिपोर्ट:
लेकिन सबसे गंभीर सवाल यह भी है कि जो लोग आंदोलन करते हैं, प्रदर्शन करते हैं, वह यह तो चाहते हैं की मीडिया उनको कवर करें। लेकिन वह मीडिया पर क्या देखते हैं? क्या वह धर्म वाले मैसेज को आगे फॉरवर्ड नहीं करते? क्या मीडिया में धर्म से संबंधित बहस को नहीं देखते? क्या वह हिंदू मुस्लिम नहीं करते? और उस वक्त जब मीडिया इनकी बातों को गलत ठहराती है तो यह मीडिया को गाली देना भी नहीं भूलते।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। जिसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन फ्रीबी( मुफ्त उपहार ) का वादा करने या वितरित करने की अनुमति न दें और जो राजनीतिक पार्टियां ऐसा करती हैं तो उनके पंजीकरण रद्द करें या पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त करें।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में एक हलफनामा दाखिल करना चाहिए और दिशा-निर्देशों के साथ साथ कुछ मंज़ूरी भी जारी करने की जरूरत है। हर पार्टी एक ही काम कर रही है।
चीफ जस्टिस ने पूछा कि जब हर पार्टी एक ही काम कर रही है तो आपने हलफनामे में केवल दो का ही उल्लेख क्यों लिया है?
प्रकाशित खबरों के अनुसार याचिकाकर्ता ने उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस आदि के मुफ्त वादों को बताया था, इसमें भारतीय जनता पार्टी के वादों का जिक्र नहीं था।
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